Ek Pauranik Katha | महर्षि च्यवन की पौराणिक कहानी

Ek Pauranik Katha – महर्षि का मूल्य

प्राचीन काल की एक पौराणिक कहानी है की भृगु के पुत्र च्यवन महर्षि एवम् बड़े ही तपस्वी थे. एक बार उन्होंने एक बड़ा व्रत लेकर जल के भीतर तपस्या करने का संकल्प लिया. अपने सारे दुर्गुणों और सुखों का परित्याग करके वो 12 तक जल समाधी में रहे.

महर्षि च्यवन की तपस्या Pauranik Katha

महर्षि के ऐसे स्वभाव व तपस्या को देखकर सभी जलचर प्राणी उनके मित्र बन गए थे. सारे जल के जीवों को उनसे कोई डर नहीं लगता था. एक बार च्यवन महर्षि ने बहुत ही श्रृद्धा से गंगा-यमुना के संगम के जल के भीतर प्रवेश किया. वो कभी जल समाधी लगा लेते कभी शांत होकर जल के ऊपर ध्यान लगते थे. इस तरह बहुत समय हो गया था. पढ़िए महात्मा विदुर की नीति .

एक दिन कुछ मल्लाह मछलियों को पकड़ने के लिए जाल लेकर उस स्थान पर आये जहां महर्षि च्यवन जलसमाधि में लीन  थे. मछलियों को पकड़ने के लिए मल्लाहो ने जाल बिछाया तो मछलियों के साथ च्यवन महर्षि भी जाल में फंस गए. जाल को खींचने के लिए मल्लाहों को बहुत ज्यादा ताकत लगानी पड़ रही थी और वो समझ गए थे की कोई बड़ी मछली या कोई बड़ा जीव जाल में फंसा है. जब उन्होंने पुरे बल से जाल खींचा तो मछलियों के साथ च्यवन भी पानी से बाहर आगये. पानी में रहने के कारन उनके पुरे शरीर के ऊपर एक पतली झिल्ली लिपटी हुयी थी.

मल्लाहों की चिंता – A Mythological Story in Hindi

चयवन को देखकर सारे मल्लाहों में हडकंप मच गया और वो डरकर उनसे क्षमा मांगने लगे. पानी से बाहर निकल आने पर सारी मछलियाँ तड़प तड़प कर मर गई. यह देखकर महर्षि का मन करुना से भर आया. उन्होंने मल्लाहों से कहा – मै भी मछलियों के साथ मै भी अपने प्राण त्याग दूंगा. यह सब मेरे साथ रहे हैं मैं बहुत दिनों तक इनके साथ पानी में रह चुका हूं. मैं इनका साथ नहीं छोड़ सकता. क्योंकि यह अब मरने वाली हैं अतः मेरा जीवित रहना भी व्यर्थ है. मैं भी अब यही अपने प्राण त्याग दूंगा.

महर्षि कि यह बात सुनकर मल्लाह भय से थर थर कांपने लगे क्योंकि उनको लग रहा था की उनकी वजह से च्यवन जैसे महर्षि को प्राण त्यागना पड़ रहा है. वे  इस वजह से राजा नहुष के पास पहुंचे और सारी घटना उन्हें बताई. राजा ने उनकी बात बड़े ध्यान से सुनी और वह अति प्रसन्न हुए कि ऐसे महात्मा आज उन्हें कृतार्थ करने ही इस रूप में दर्शन देने आये है.

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राजा नहुष की महर्षि से प्रार्थना Raja ki Prey

वह इसे भगवत कृपा ही समझ कर मंत्री तथा पुरोहितों को साथ लेकर शीघ्र ही उस स्थान पर पहुंचे और उन्होंने अत्यंत विनयपूर्वक हाथ जोड़कर महात्मा च्यवन  को प्रणाम किया और विधिपूर्वक उनका पूजन किया. उन्होंने फिर उनसे  पूछा कि है भगवन सेवा के लिए हम सब  उपस्थित हैं आप आज्ञा करिए.

महर्षि बोले राजन् आज इन मल्ल्हाओ ने बड़े ही जतन से मछलियों के साथ मुझे भी जाल से निकाला है. मुझे देखकर वह अत्यंत भयभीत हो गए हैं. इन्हें मछलियां भी नहीं मिल पायी है. इनकी आजीविका  कैसे चलेगी. अतः आप इन मछलियों के साथ ही मेरा भी मूल्य  इन्ही को दे दीजिए. जिससे  इनकी आजीविका चल सके. पढ़िए बच्चो की कहानी-बाघ का लालच .

तब उसने अपने पुरोहित से कहा पुरोहित जी इन मल्लाहों को  महर्षि के मूल्य के अनुसार 1000 मुद्राएँ  दे दीजिए. यह सुनकर महर्षि च्यवन बोले – राजन् क्या मेरा मूल्य क्या हज़ार मुद्राएँ ही है. क्या मैं इतने ही मुद्राओं में बेचने योग्य हूं? आप अपने विवेक और बुद्धि से ठीक-ठीक निर्णय कर मेरा मूल्य निर्धारित कीजिए.

उत्तर में राजा  ने कहा  इन मल्लाहो को एक लाख मुद्रा दे दीजिए. ऐसा कहकर वो महर्षि से पूंछने  लगे की भगवन क्या यह मूल्य आपको उचित लगा है या नहीं?

महर्षि बोले हे राजन मुझे लाख के मूल्य में मत बांधिए. आप अपने पुरोहितों और ज्ञानियों से उचित परामर्श कर मेरा मूल्य तय कीजिए. ऐसे में  विचार किए बिना ही एक करोड़ मुद्रायें मल्लाहों को देने के लिए पुरोहित जी से कहा. पढ़े Hindi Stories with moral values

महर्षि च्यवन का उचित मूल्य Value of Maharshi Chyavan

तो फिर राजा ने अपना आधा राज पाट  देने के लिए कहा उस पर महर्षि बोले राजन आपका आधा ही नहीं यह सारा राज्य में मेरे उचित मूल्य नहीं है यह आपको पता नहीं है इसलिए आप  ऋषि व् ज्ञानियों  से विचार कीजिए. यह सुनकर राजा नहुष को बहुत कष्ट हुआ और उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था तब उन्होंने अपने ज्ञानियों , मंत्रियों तथा पंडितों  से इस विषय में विचार के लिए कहा.

इसी समय फल – पत्तियों  का सेवन करने वाले एक दूसरे मुनि राजा नहुष के समीप आए और उन्होंने राजा से कहा राजन आप दुखी न होइए. मैं इन महात्मा पुरुष को संतुष्ट कर दूंगा और इनका उचित मूल्य भी आपको बता दूंगा. आप मेरी बात को बड़े ध्यान से सुनिए हमने गलती से भी असत्य का भाषण नहीं किया है. इसलिए आप मेरी बातों पर दुःख मत कीजिएगा.

इस पर राजा नहुष ने कहा मैं कष्ट में डूबा हुआ हूं. एक महर्षि अपने प्राणों का त्याग करने को उत्सुक हैं. यदि उनका उचित मूल्य आप बता दें तो यह आपका आपकी बड़ी कृपा होगी. इस भयंकर कष्ट में मुझे मेरे राज्य तथा कुल की रक्षा करिए. यह सुनकर वह वनवासी मुनिवर  कहने लगे राजन ब्राह्मण और गाय  एक ही कुल के हैं.

परंतु दो रूपों में व्याप्त हैं. ब्राह्मण मंत्र रूप है तो गाय हविष्य रूप में है. इन दोनों का  उचित मूल्य नहीं लगाया जा सकता क्योकि ये अमूल्य है .  इसलिए आप इनकी कीमत में एक गाय इनको प्रदान कीजिए.

ब्राह्मण और गाय का महत्त्व – Importance of Cow & Brahman

यह सुनकर राजा नहुष और पुरोहित वर्ग अत्यंत प्रफुल्लित हो गए वह शीघ्र ही महर्षि के पास जाकर बोले हैं ब्राह्मण मैंने एक गौ दान देकर आपको खरीद लिया. आप उठिए मैं आपका यही उचित मूल्य मानता हूं . राजा की बात सुनकर चमन बोले राजन् आपने उचित मुझे देख कर मुझे खरीदा है. इस संसार में गौ के समान कोई दूसरा धन  नहीं है.गौ के नाम और गुणों का कीर्तन तथा श्रवण करना , गांव का दान देना और उनका दर्शन करना उनकी शास्त्र में बड़ी प्रशंसा की गई है.

ये कार्य सम्पूर्ण दुखों को दूर करके परम कल्याण की प्राप्त करने वाले हैं उनमें पाप का लेशमात्र नहीं है. गौएँ मनुष्यों को अन्न और देवताओ को हविष्य देने वाली है. गौएँ ही यज्ञ का संचालन करने वाली तथा उनका मुंह है. वह विकार रहित दिव्य अमृत धारण करते हैं और दोहने  पर अमृत ही देती हैं. वह अमृत की आधारभूटा हैं. सारा संसार उनके सामने नतमस्तक होता है.

गायों  का समूह जहां बैठ कर निर्भयतापूर्वक सांस लेता है उस स्थान की शोभा बढ़ा देता है और वहां के सारे पापों को खींच लेता है. गाय मनुष्य को स्वर्ग पहुँचाने का माध्यम है और उन्हें स्वर्ग में भी पूजा  जाता  हैं. गायों की पूजा से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है. उन से बढ़कर दूसरा कोई नहीं है. और न ही उनके अमूल्य त्याग, पवित्रता और महानता का कोई वर्णन कर सकता है.

इतना बोलकर महर्षि चुप हो गए और मल्लाहों के राजा ने महर्षि से गाय को स्वीकार करने के लिए प्रार्थना की. महर्षि ने उनकी भावना को मान लिया और कहा कि गौ दान के कारन तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो गए. तुम सब मल्लाह शीघ्र ही इन मछलियों के साथ स्वर्ग को प्राप्त करोगे. महर्षि च्यवन ऐसा कह रहे थे कि मल्लाह और सारी मछलियाँ स्वर्ग जाने लगीं.  उन्हें स्वर्ग की ओर जाते देखना सबको बड़ा अद्भुत लगा.

राजा ने उन दोनों मुनियों  का विधिवत पूजन किया . महर्षि च्यवन अपने आश्रम चले गए और गोजत  मुनि भी अपने स्थान के प्रस्थान कर गए. प्रेरक कहानिया – collection of Inspirational story in Hindi

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